Truth of 800 Years Islam Rule In India - Amit Vikram

आज कल कोई भी मुंह उठा के कह देता है की हमने तुम पर ८०० वर्ष शासन किया यहाँ तक की आर एस एस ने भी ८०० वर्ष परतंत्रता की बात कर सदैव हिन्दुओ को कायर बनाने का ही प्रयास किया खैर हम यहाँ चर्चा करते है की क्या वास्तव में ऐसा था तो आरम्भ करते है सातवी शताब्दी से ही जब अरब से निकले इस्लाम ने विश्व की प्राचीन सभ्यताओं पारसियों, मिस्रियों, और रोमन को निगल लिया तो इस इस्लाम ने भारतीय सनातन संस्कृति पर भी सातवीं शताब्दी से आक्रमण आरम्भ कर दिए तो बात करता हूँ भारतीय उपमहाद्वीप की इतिहास में सातवीं शताब्दी से लेकर १० वी शताव्दी में हुए घटना कर्म की जब मुसलमानो ने ६३६ ईसवी से ही सिंध और मुंबई के पास ठाणे के बंगरगाह पर आक्रमण आरम्भ कर दिए थे पर सभी आक्रमण असफल रहे प्रथम और अंतिम सफलता अरबो को ७१२ में मुहम्मद बिन क़ासिम को राजा दाहिर के विरुद्ध मिली पर ये विजय अप्रभावी थी क्योंकि क़ासिम की मृत्यु के पश्चात राजा जय सिंह ने ब्रह्मनाबाद को फ़िर से अपने अधिकार में कर लिया और अन्य छोटे-2 राजाओ ने मुल्तान अलोर और राओर जैसे अन्य स्थानों पर अधिकार कर वापस जाने पर विवश किया इधर नए खलीफा हिसाम ने सेनापति जुनैद को सिंध का राज्यपाल बनाया और जलमार्ग से देवल तक आया जयसिंह ने प्रतिरोध किया पर रणभूमि में ही जयसिंह की मृत्यु हो गयी फिर जुनैद का लालच बढ़ा और गुजरात और मालवा पर आक्रमण कर दिया परन्तु मालवा के राजा प्रतिहार नागभट ने अरबो को वापस सिंध तक भेज दिया इस 150 वर्षो के दौर में तीन राजाओ बप्पा रावल, मिहिर भोज और ललितादित्य मुक्तिपीडा ने ऐसा कड़ा प्रतिरोध किया कि स्पेन, ईरान और पूरे मध्य पूरब को जीतने वाले अरब सिंध में भी सुरक्षित नही रह गए और 1000 ईसवी तक फिर किसी मुस्लिम आक्रमणकारी का साहस नही हुआ और सिंध में भी अरब बहुत तीव्र प्रतिरोध झेल रहे थे 850 तक सिंध पर भी अरबो का प्रभाव कम पड़ने लगा!
अब बात करते है ११ वी शताब्दी से लेकर १२ वी शताब्दी तक के घटनाक्रम की इस दौर में महमूद गजनवी का आरंभ होता है जिसके 17 आक्रमणों का उल्लेख है तो जिसमे उसकी 5 ही प्रभावी विजय थी आज के पाकिस्तान तक को ही ग़ज़नवी को जीतने में 25 वर्ष लगे (1001–1026) जो कि अस्थायी रहे जिस सोमनाथ मंदिर की दौलत को वो लूटकर ले जा रहा तब सिंध के जाटो ने लूट लिया और लूट की दौलत गज़नी वापस नही जा सकी और उसकी मृत्यु (1030) होते ही जहा तक उसका शासन था वो स्थायी नही रह सका और जब उसके भतीजे सालार गाजी ने आगे बढ़ने का प्रयास किया तो 1034 में महाराज सुहेलदेव ने बहराइच के युद्ध मे सालार ग़ाज़ी को उसकी सेना सहित गाजर मूली की तरह काटते गए फिर शेष भारत पर जो आज का भारत का एरिया है पर मुसलमानों ने अगले 150 वर्षो तक चुनौती नही दी और हिन्दू राज्य प्रभावी रहे!
अब बात करते है १२ वी शताब्दी के अंत से लेकर १८ वी शताब्दी के आरम्भ जिसमे कहा जा सकता है की मुसलमानो ने ५०० वर्ष तक शासन किया एक बड़े भूभाग पर राज किया पर क्या ये पूरी तरह से सत्य इसकी भी विवचेना करते है फिर इस दौर में गौरी का जिक्र आता है गौरी ने 1178 में गुजरात पर आक्रमण किया पर पराजित हुआ फिर 1191 में पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को हराया 1192 में गौरी विजयी हुआ और पंजाब दिल्ली और कन्नौज पर गौरी का अधिकार हुआ पर ये विजय भी अस्थायी रही और 1206 में सिंध में खकखरो के साथ युद्ध मे गौरी मार डाला गया इधर कुतुबुद्दीन ऐबक दिल्ली की गद्दी पर बैठा 1210 में लाहौर में मृत्यु हुई और गौरी का जीता राज्य बिखर गया इसके बाद इलतुतमिष ने अजमेर रणथम्भौर, ग्वालियर कालिंजर और महोबा पर विजयी पायी पर कुछ समय मे ही राजपूत राजाओं चंदेल, परमार और प्रतिहारो ने सभी नगर फिर वापस जीते इस तरह फिर सत्ता हिन्दुओ के ही हाथ मे रही और सलतनत दिल्ली तक ही सीमित रही और बाद में बलबन भी प्रतिरोधों को संभाल नही सका फिर खिलजी वंश आया हा अलाउद्दीन खिलजी ने कुछ समय के लिए एक साथ गुजरात 1298 चित्तोर 1303 मालवा देवगिरि वारंगल जीता पर 1316 में ही अलाउद्दीन की मृत्यु होते ही फिर से चित्तोर रणथम्भौर वापस छीने और दक्षिण के राज्यो ने भी अपने आप को स्वतंत्र घोसित किया इसके बाद तुग़लक़ वंश अस्तित्व में आया और मुहम्मद तुग़लक़ ने देवगिरि कंपिली और मुदरई पर विजयी पायी और राजधानी दिल्ली से हटाकर देवगिरि रखी पर मेवाड़ के राजा हम्मीर सिंह ने मुहम्मद तुग़लक़ को कई युद्व में पराजित किया और राजपुताना के कई राज्यो को स्वंत्रत कराया और फिर उत्तर भारत के लगभग एक बड़े भूभाग पर 1326 से 1527 तक राजपूतो ने 200 वर्षो तक राज्य किया और तुग़लक़ कई युद्ध मे पराजय के बाद फिर दिल्ली तक ही रह गया जो कि 1399 में तैमूर के हमले से लगभग पूरी तरह समाप्त हो गया इस बीच दक्षिण भारत मे विजयनगर साम्राज्य का एक शक्तिशाली राज्य स्थापित किया जो कि 1505–1530 तक कृष्णदेव राय के शासन में अपने चरम तक था और तुग़लक़ के बाद जितने भी दिल्ली सल्तनत के वंश रहे सबकी शक्ति दिल्ली के पास तक ही सीमित रह गयी! फिर बाबर आया उसने कुछ विजय अर्जित की जो कि अस्थायी रही और उसका बेटा हुमायूं शेरशाह से पराजित होकर भाग गया दिल्ली पर शेरशाह के बाद हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली पर अधिकार किया और 1556 तक राज्य किया पर पानीपत में अकबर के हाथों पराजय के पश्चात दिल्ली पर मुग़ल वंश की स्थापना हुई इधर अकबर ने राजपूतो के साथ मित्रता की और उनके सहयोग से चारो दिशाओ में मुग़ल राज्य का विस्तार किया जो कि राजपूत सेनानियों और उनकी सेनाओ द्वारा अर्जित थी जो कि 150 वर्ष तक चला और अकबर से लेकर शाहजहाँ तक इन 100 वर्षो में हिन्दू और मुसलमानों का संयुक्त पर हिन्दू शक्ति पर आश्रित राज्य था पर इस्लामिक राज्य नही और तभी इस मुग़ल साम्राज्य के मध्य मेवाड़ स्वतन्त्र था पर औरंगज़ेब ने जैसे ही इस्लामिक कट्टरता अपनायी राजपूतो ने विद्रोह कर दिया उधर दक्षिण में छत्रपति शिवाजी महाराज के नेतृत्व में मराठो ने मुग़ल साम्राज्य की ईंट से इट बजा कर रख दी और इधर पंजाब में सिखों ने बगावत कर रखी थी और शेष उत्तर भारत में जाटों और राजपूतों ने औरंगजेब को ऐसी चुनौती दी की विद्रोह दबाये नही दबा बढ़ता ही गया जिसमे राजा राम जाट और दुर्गादास राठौर जैसे प्रमुख योद्धा थे! इधर असम और और उत्तराखंड जैसे राज्य में कभी भी मुस्लमान विजय नहीं रहे जैसे ही औरंगज़ेब की मृत्यु हुई मुग़ल साम्राज्य ताश के पत्तो की तरह बिखर गया! दूसरा इनका कब्ज़ा बस नगरीय इलाको तक सीमित था उस समय नगर चारदिवाहिरी तक सीमित था इनका कब्ज़ा कभी भी ग्रामीण इलाको, और वनवासियों पर नहीं था ये इनके स्वयं के प्राथमिक स्त्रोत बताते है यहाँ तक की जब भी मुसलमानो की सेना इन ग्रामीण इलाको से गुजरती थी तो इनको गाँव वाले लूट लेते थे और मार देते थे इसलिए आपने देखा होगा की गाँवों में मुस्लमान नगरों की अपेक्षा बहुत कम होते है!
अब आते है १८ वीं शताब्दी के आरम्भ में जब औरंगज़ेब की मृत्यु हुई तो एक हिन्दू शक्ति मराठा आयी और 1720–1740 तक मराठो के पेशवा बाजीराव ने 43 लड़ाईया लड़ी और सब मे विजय रहे 1737 में मुघलो को पराजित कर दिल्ली तक ही सीमित कर दिया और मराठो का 1740 तक एक तिहाई भारत पर अधिकार हो गया इधर बाद में मराठो ने 1758 तक पेशावर तक एक हिन्दू मराठा राज्य स्थापित कर दिया और तीन चौथाई भारत पर मराठा साम्राज्य स्थापित हो गया हालांकि पानीपत की तीसरी लड़ाई में जब अहमद शाह अब्दाली से लड़ाई हुई तो मराठो की काफी हानि हुई और मराठा विस्तार रुक गया पर अब्दाली की ये विजय अस्थायी रही इस विजय से साथ सतलज नदी के उत्तर में अब्दाली का राज्य फैला पर इधर पंजाब से सिख भी बहुत शक्तिशाली हो गए थे और इस लड़ाई से अब्दाली को भी बहुत हानि हुई जिसका लाभ पंजाब में सिखों ने उठाया और पूरे पंजाब पर सिख मिसलों का अधिकार हो गया और आज के आधे से अधिक पाकिस्तान, जम्मू और खैबर पख्तून तक सिखों ने 1775–1849 तक राज्य किया औऱ इधर शेष भारत मे पानीपत की लड़ाई के पश्चात कमजोर हो रही मराठा शक्ति ने महादजी सिंधिया के नेतृत्व में नई शक्ति भरी और 1772 में फिर से दिल्ली और उत्तर भारत पर विजय प्राप्त कर दो तिहाई भारतीय उपमहाद्वीप पर राज किया जो कि 1818 तक चला औऱ इधर मुग़ल राजा 1707 के बाद 1857 तक पहले 100 वर्ष तक मराठो और बाद के वर्षों में अंग्रेज़ो के आश्रित रहे और मुगलों की हैसियत एक governer से अधिक नही गयी!
तो हम ये कह सकते है कि ये लड़ाईया थी न कि शासन कुछ में हिन्दू विजयी रहे कुछ में मुसलमान पर 18 वी शताब्दी के अंत में हिन्दू राजाओ की विजय के साथ समाप्त हुई! यही कारण है कि आज भी हिन्दू बहुत बड़ी संख्या में आज भी अस्तित्व में है!